चंद्रपुर जिला जो महाराष्ट्र के विदर्भ का क्षेत्र है। प्राचीन समय से इस क्षेत्र पर राष्ट्रकूट, चालुक्य, देवगिरी के यादव और बाद में गोंडों का शासन था। चंद्रपुर जिले का विभाजन कर 26 अगस्त 1982 को गढ़चिरोली जिले का निर्माण किया गया। इसके पूर्व गढ़चिरोली जिले का संपूर्ण इलाका चंद्रपुर जिले के ही अधीन था। आपने KGF की फिल्में तो देखी ही होगी। आपने Thangalaan film के बारे में तो सुना ही होगा। इन फिल्मों की कहानियां सोने की खानों और उस पर अधिपत्य जमाने के संघर्ष का बयां करती हैं। लेकिन इन फिल्मों से भी बेहतर कहानियां या यूं कहे की सच्ची कहानियां, असली इतिहास चंद्रपुर जिले के इतिहास के गर्भ में छिपा है। जो Vairagarh Fort आज गढ़चिरोली जिले में शामिल है, वह कभी हिरों की खानों के लिए मशहूर था। KGF व Thangalaan की तरह से यहां के अधिपत्य के संघर्ष में खून की नदियां बही थी। वैरागढ़ के भग्न अवशेष आज भी इसका साक्ष्य प्रस्तूत करते हैं। खेद की बात है कि हमने अपने शौर्यपूर्ण इतिहास को भूला दिया और KGF जैसे फिल्मों की कहानियों पर तालियां पिटते रह गये।
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वैरागड का वीरता और संघर्ष से भरा इतिहास
रक्त से लिखी गई वीरता की कहानी
गडचिरोली जिला जब भी चर्चा में आता है, तो वहां की नक्सली गतिविधियों और रक्तरंजित इतिहास की छवि सामने आती है। लेकिन यह गडचिरोली का पूरा इतिहास नहीं है। इस क्षेत्र का वास्तविक इतिहास यहां के आदिवासियों की वीरता और संघर्ष की गाथाओं में छिपा हुआ है। ये गाथाएं आज भी विदर्भ के इतिहास में प्रमुखता से सामने नहीं आई हैं। वास्तव में, यहां के आदिवासी वीरता की कहानियां इतनी व्यापक हैं कि वे पूरे विदर्भ के इतिहास को भी ढक सकती हैं।
Thangalaan Film और वैरागड का भूला हुआ इतिहास
हाल ही में दाक्षिणात्य सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता चियान विक्रम की फिल्म “तंगालान” ने गडचिरोली जिले के इतिहास के एक भूले हुए पन्ने को फिर एक बार याद दिला दिया है। हालांकि यह फिल्म कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) के इतिहास पर आधारित है, जहां अंग्रेजों ने कैसे वहां के सोने की लूट की और स्थानीय लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया, इस भयावह वास्तविकता को दिखाया गया है। इसी तरह का इतिहास वैरागड का भी है, जहां के आदिवासियों ने अपने खनिज संपदा की रक्षा के लिए अपना खून बहाया।
वैरागड का पुरातन महत्व और संघर्ष की गाथा
वैरागड का भूभाग महाभारत और रामायण काल के दंडकारण्य का महत्वपूर्ण हिस्सा था। यह क्षेत्र नागवंशी माना राज्य के अधीन था। 1176 से 1193 के बीच शिलाहार राजा भोज ने यहां के किले का निर्माण किया। बाद में इस किले पर यादवों का कब्जा हुआ, फिर आदिलशाही और मराठा साम्राज्य का। औरंगजेब ने 1699 में इस किले पर कब्जा किया, लेकिन मराठों ने इसे पुनः अपने अधीन कर लिया। अंततः 1818 में अंग्रेजों के हाथों यह किला चला गया।
आदिवासी संघर्ष और वैरागड की खनिज संपदा की रक्षा
वैरागड का नाम संस्कृत में “वैरागर” या “वज्राकर” (हीरे की खदान) से लिया गया है। यह क्षेत्र अपनी हीरे की खानों के लिए प्रसिद्ध था, और इन्हीं खानों की रक्षा के लिए यहां के आदिवासियों ने कई युद्ध लड़े। 1422 में अहमद शाह बाहमनी ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया, जिसमें 108 मुस्लिम सैनिक मारे गए। यहां आज भी उनकी कब्रें मौजूद हैं। नागवंशी माना और गोंड राज्य के शासकों ने यहां हीरे की खदानों का दोहन करने का प्रयास किया, लेकिन अंततः अंग्रेजों ने इन खानों को अपने कब्जे में ले लिया और यहां उत्खनन शुरू किया।
महाराष्ट्र के इतिहास में छुपी वीरगाथाएं
वैरागड क्षेत्र में गोंड समुदाय की बड़ी आबादी थी। प्रकृति पूजा करने वाले ये आदिवासी अपने क्षेत्र की खनिज संपदा की रक्षा करते थे। इन खनिज संपदाओं की रक्षा करते हुए यहां के आदिवासियों ने अपने खून से इस धरती को लाल कर दिया। उनकी वीरता पर कई फिल्में बनाई जा सकती हैं, जैसे थंगालान, कांटारा, या केजीएफ, लेकिन दुर्भाग्यवश इतिहास ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया। महाराष्ट्र के इतिहास को समृद्ध करने वाली इन वीरगाथाओं को इतिहास में स्थान नहीं मिल पाना एक बड़ी त्रासदी है।