हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में महायुति गठबंधन ने जलगांव जिले की सभी 11 सीटों पर कब्जा कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। इस जीत ने जहां महायुति को मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया है, वहीं महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने इस पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
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मुक्ताईनगर: चंद्रकांत पाटिल की जीत पर रोहिणी खडसे ने जताया संदेह
मुक्ताईनगर विधानसभा क्षेत्र में शिंदे गुट के चंद्रकांत पाटिल ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार गुट की एडवोकेट रोहिणी खडसे को पराजित किया। खडसे ने चुनाव परिणामों पर गहरी आपत्ति जताते हुए 16 मतदान केंद्रों की वोटिंग मशीनों और वीवीपैट पर्चियों की विस्तृत जांच की मांग की है। उन्होंने जिला कलेक्टर कार्यालय में आवश्यक 7.55 लाख रुपये की फीस के साथ आवेदन भी जमा किया है।
संदेह का आधार:
खडसे ने आरोप लगाया कि उनके प्रतिद्वंद्वी द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट में प्रत्येक बूथ के अनुमानित वोटों की संख्या को पहले ही बताया गया था। आश्चर्यजनक रूप से, वास्तविक परिणाम पोस्ट में बताई गई संख्या से मेल खाते हैं।
एरंडोल: सतीश पाटिल ने अपने गढ़ में हार पर उठाए सवाल
एरंडोल विधानसभा क्षेत्र से महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार डॉ. सतीश पाटिल ने 4 से 5 बूथों पर पुनर्मतगणना की मांग की है। पाटिल ने 45 हजार रुपये की फीस जमा कराते हुए कहा कि यह क्षेत्र उनकी पार्टी का गढ़ रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि अपने ही गांव में उनकी हार कैसे संभव हो सकती है।
पाचोरा: वैशाली सूर्यवंशी ने भी की पुनर्मतगणना की मांग
पाचोरा विधानसभा क्षेत्र में ठाकरे गुट की वैशाली सूर्यवंशी और शिंदे गुट के किशोर पाटिल के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही थी। किशोर पाटिल ने महत्वपूर्ण अंतर से जीत हासिल की, जिससे वैशाली सूर्यवंशी ने चुनाव परिणामों पर आपत्ति जताई। उन्होंने जिला निर्वाचन अधिकारी को पुनर्मतगणना का आवेदन दिया है।
सोशल मीडिया पोस्ट ने बढ़ाया विवाद
महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवारों ने दावा किया कि सोशल मीडिया पर साझा की गई अनुमानित वोटों की सूची ने चुनाव की पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं। उनके मुताबिक, यह स्थिति चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी की ओर इशारा करती है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी आपत्तियां सामान्य हैं, लेकिन ईवीएम और वीवीपैट पर्चियों की जांच से स्थिति स्पष्ट हो सकती है।
महायुति की प्रचंड जीत के बाद उठे यह सवाल न केवल विपक्षी दलों की चिंताओं को दर्शाते हैं, बल्कि चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी नई बहस छेड़ते हैं। अब सभी की नजरें पुनर्मतगणना के नतीजों पर टिकी हैं।