महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के जंगल अंतरराष्ट्रीय शिकारियों के निशाने पर
Tiger Poacher Ajit Rajgond: बाघों के संरक्षण के लिए प्रयासरत संगठनों और अधिकारियों के लिए एक नई चुनौती उभरकर सामने आई है। ‘टाइगर बोन ग्लू’ (बाघ की हड्डियों से बना गोंद) का अवैध व्यापार तेजी से बढ़ रहा है, जिससे भारत के घने जंगलों में रहने वाले बाघों के अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। खासकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के जंगलों में यह संकट और गहरा गया है।
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क्या है ‘टाइगर बोन ग्लू’, और क्यों बढ़ रही है इसकी मांग?
‘टाइगर बोन ग्लू’ को बाघ की हड्डियों को दो से तीन दिनों तक प्रेशर-कुकिंग (दबाव में उबालकर) के जरिए बनाया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद यह गाढ़े भूरे रंग के चिपचिपे पदार्थ के रूप में निकलता है, जिसे केक (टुकड़ों) के रूप में बेचा जाता है। यह पारंपरिक चीनी चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है और इसे मांसपेशियों और हड्डियों की बीमारियों के इलाज के लिए प्रभावी माना जाता है। इसके अलावा, इसे ताकत बढ़ाने और कामोत्तेजक (aphrodisiac) गुणों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
जंगली बाघों के हड्डियों की मांग क्यों ज्यादा?
‘टाइगर बोन ग्लू’ की मांग इतनी तेजी से बढ़ रही है कि चीन और वियतनाम में अवैध रूप से चल रहे बाघ फार्म भी इसकी आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। इन देशों में इसे ‘Cao Ho’ कहा जाता है।
एक वन्यजीव विशेषज्ञ ने बताया कि खरीदार जंगली बाघों की हड्डियों से बने गोंद के लिए अधिक कीमत चुकाने को तैयार हैं क्योंकि इसे अधिक प्रभावी माना जाता है। जब उनसे पूछा गया कि ऐसा क्यों है, तो उन्होंने तुलना करते हुए कहा, “जिस तरह देसी मुर्गा और ब्रॉयलर चिकन के स्वाद में फर्क होता है, उसी तरह जंगली और पाले गए बाघ में भी फर्क होता है।”
मध्य भारत के जंगल क्यों बने शिकारी गिरोहों का केंद्र?
विशेषज्ञों के मुताबिक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के घने जंगलों में बाघों की बड़ी संख्या मौजूद है। ताडोबा, पेंच, कान्हा, सतपुड़ा और मेलघाट जैसे संरक्षित क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बाघ पाए जाते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय शिकारियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए हैं।
हाल ही में भारत के अब तक के सबसे बड़े शिकार नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है। इस मामले में करोड़ों रुपये के लेन-देन का खुलासा हुआ है। इसका सीधा संबंध मध्य प्रदेश के कुख्यात शिकारी अजित राजगोंड और एक अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट से जुड़ा हुआ पाया गया है।
कैसे काम करता था यह गिरोह?
यह बहेलिया गिरोह महाराष्ट्र चंद्रपुर जिले के राजुरा तहसील के चुनाला -बामनवाड़ा गांव से 25 जनवरी को गिरफ्तार हुए है। सूत्रों के मुताबिक, यह भारत के अलग-अलग हिस्सों में बाघों और तेंदुओं का शिकार करता था और इसके पीछे एक बड़े अंतरराष्ट्रीय गिरोह का हाथ था। अधिकारियों ने यह नहीं बताया कि इस गिरोह ने कितने बाघों का शिकार किया, लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, “संख्या चौंकाने वाली है।”
कौन है इस सिंडिकेट का मास्टरमाइंड?
अभी तक इस अंतरराष्ट्रीय गिरोह के मुख्य सरगना की पहचान नहीं हो पाई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, इसका नेटवर्क भारत, चीन और वियतनाम तक फैला हुआ है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की स्पेशल टाइगर स्ट्राइक फोर्स (STSF) की एक टीम इस बहु-एजेंसी जांच का हिस्सा बनी है और मामले की गहराई से पड़ताल कर रही है।
कैसे पकड़ में आए शिकारी?
जांचकर्ताओं ने गिरफ्तार शिकारियों के मोबाइल फोन लोकेशन को ट्रैक किया है, जिससे यह पता चला कि वे देश के कई संरक्षित जंगलों के आसपास सक्रिय थे।
कुख्यात शिकारी अजीत राजगोंड समेत 9 गिरफ्तार
इस बहेलिया गिरोह में शामिल अजीत राजगोंड, इंजेक्शनबाई , रीमा, रबीना, सेवा समेत इन आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जांच के दौरान मेघालय से गिरोह के संबंध सामने आने के बाद पूर्व सैनिक लालनेसुंग को शिलांग से गिरफ्तार किया गया। इसके बाद पंजाब से सोनू सिंह को भी वन विभाग ने हिरासत में लिया। जहां अदालत ने उन्हें 20 फरवरी तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
जांच के दौरान पुलिस ने मेघालय के शिलांग निवासी सुश्री निंग सॅन लुन नाम की एक महिला को भी गिरफ्तार किया। इसके साथ ही इस मामले में गिरफ्तार आरोपियों की संख्या बढ़कर 9 हो गई है।
बाघ संरक्षण के लिए नई चुनौती
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि अब ‘टाइगर बोन ग्लू’ बाघों और तेंदुओं के शिकार का प्रमुख कारण बन चुका है। इस अवैध व्यापार को रोकने के लिए सरकार और वन विभाग को सख्त कार्रवाई करनी होगी। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो भारत में बाघों के संरक्षण की दशकों की मेहनत पर पानी फिर सकता है।