कर्नाटक: आलंद मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए संगठित ‘गिग इकोनॉमी अपराध’, SIT जांच में बड़ा खुलासा
कर्नाटक सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी की जांच में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। एसआईटी की रिपोर्ट के अनुसार, कलबुर्गी जिले के आलंद में मतदाताओं के नाम सूची से बाहर निकालने के लिए प्रति नाम 80 रुपये का भुगतान किया गया था। यह मामला अब एक संगठित चुनावी अपराध की ओर इशारा कर रहा है, जिसने देश में मतदान के अधिकार और चुनावी प्रक्रिया की शुचिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कांग्रेस और राहुल गांधी के दावों को मिला बल
एसआईटी का यह सनसनीखेज खुलासा कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी द्वारा लंबे समय से किए जा रहे उन दावों को पुख्ता करता है, जिनमें उन्होंने मतदाता सूची में ‘धांधली’ और ‘वोटचोरी’ का आरोप लगाया था। 22 और 23 अक्टूबर को विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा रिपोर्ट की गई खबरों में आलंद की मतदाता सूची से पैसे देकर वोटरों के नाम हटाने का यह आंकड़ा किसी एक प्रशासनिक चूक के बजाय एक सुव्यवस्थित और संगठित अभियान की ओर साफ संकेत देता है।
‘गिग इकोनॉमी’ में बदला चुनावी अपराध
इस मामले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि मतदाताओं के नाम हटाना अब एक भुगतान वाली ‘गिग इकोनॉमी’ अपराध में बदल गया है। एसआईटी जांच से यह स्पष्ट होता है कि नागरिकों के मतदान के मौलिक अधिकार की परवाह किए बिना, लापरवाही से यह काम करवाया जा रहा था। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भीतर से खोखला कर सकती है।
4.8 लाख रुपये का वित्तीय लेनदेन
एसआईटी के अनुसार, आलंद विधानसभा क्षेत्र में कुल 6,018 मतदाताओं के नाम हटाने के लिए 4.8 लाख रुपये (6018 x ₹80) का भुगतान किया गया था। हालांकि एसआईटी अभी भी इस बड़ी राशि के स्रोत की जांच कर रही है, लेकिन उसने इस वित्तीय श्रृंखला में शामिल व्यक्तियों की पहचान कर ली है। जांच दल का दावा है कि उन्होंने यह पता लगा लिया है कि पैसा किसे मिला।
स्थानीय निवासी थे श्रृंखला का हिस्सा
एसआईटी की जांच में कलबुर्गी के दो स्थानीय निवासियों, मोहम्मद अशफाक और मोहम्मद अकरम का नाम सामने आया है। जांच एजेंसी का मानना है कि ये दोनों व्यक्ति ‘वोटचोरी’ की इस पूरी श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। इन दोनों की भूमिका और उन्हें मिले पैसे की विस्तृत जांच अभी जारी है।
यह मामला सिर्फ मतदाता सूची में गड़बड़ी का नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र में पैसे के प्रभाव और चुनावी प्रक्रिया को दूषित करने के लिए आपराधिक तत्वों के संगठित प्रयास को उजागर करता है। एसआईटी की विस्तृत जांच और धन के स्रोत का पता लगाने से ही इस ‘गिग इकोनॉमी अपराध’ के पीछे के असली मास्टरमाइंड और उनके उद्देश्यों का पता चल पाएगा। यह घटना देश के सभी राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के लिए एक खतरे की घंटी है कि चुनावी सुधारों को और अधिक सख्त तथा पारदर्शी बनाया जाए।
