ADR रिपोर्ट में खुलासा: 🔍लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने खर्च किए 1,494 करोड़ रुपये, कांग्रेस ने 620 करोड़। कुल 32 दलों ने मिलकर झोंके 7,400 करोड़ रुपये। जानिए किसने कितना खर्च किया और कितना देर से दिया खर्च का हिसाब।
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने अकेले उड़ाए 1,494 करोड़ रुपये, कुल खर्च का 44.56% हिस्सा
चुनाव सुधारों पर कार्यरत गैर-सरकारी संगठन 🔍एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने 🔍एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है, जिसमें राष्ट्रीय और राज्य स्तर के 32 राजनीतिक दलों द्वारा 🔍लोकसभा चुनाव 2024 और साथ ही आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा व सिक्किम में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान किए गए खर्च का विश्लेषण किया गया है।
🔍ADR की रिपोर्ट के अनुसार, 🔍भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अकेले 1,494 करोड़ रुपये खर्च किए, जो कि सभी दलों द्वारा किए गए कुल खर्च का 44.56% हिस्सा है। इस प्रकार, बीजेपी खर्च के मामले में सबसे आगे रही।
दूसरे स्थान पर कांग्रेस पार्टी रही, जिसने 620 करोड़ रुपये चुनावी प्रचार में खर्च किए। कांग्रेस का कुल खर्च में योगदान 18.5% रहा।
कुल खर्च का आंकड़ा:
इन 32 दलों ने 16 मार्च से 6 जून 2024 के बीच लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कुल 7,445.57 करोड़ रुपये खर्च किए। इसमें सिर्फ विधानसभा चुनावों में 3,352.81 करोड़ रुपये खर्च हुए।
विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय दलों ने कुल खर्च का 65.75% हिस्सा, यानी 2,204 करोड़ रुपये खर्च किए। वहीं, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों मिलाकर कुल खर्च का 62% से अधिक खर्च करने वाले दो प्रमुख दल रहे।
राष्ट्रीय बनाम राज्य स्तरीय दलों का खर्च:
राष्ट्रीय दलों का कुल खर्च: 6,930.25 करोड़ रुपये (93.08%)
राज्य स्तरीय दलों का कुल खर्च: 515.32 करोड़ रुपये (6.92%)
यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि चुनावों में खर्च की बागडोर पूरी तरह से राष्ट्रीय दलों के हाथ में रही।
खर्च विवरण में देरी:
कानूनन राजनीतिक दलों को लोकसभा चुनाव के 90 दिनों के भीतर और विधानसभा चुनाव के 75 दिनों के भीतर चुनाव खर्च का ब्योरा निर्वाचन आयोग को सौंपना होता है।
लेकिन 🔍ADR की रिपोर्ट से पता चला है कि कई दलों ने हिसाब समय पर नहीं दिया।
आप 🔍(आम आदमी पार्टी) ने 168 दिन देरी से खर्च रिपोर्ट जमा की।
बीजेपी ने भी 139 से 154 दिन की देरी से रिपोर्ट सौंपी।
यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे भारत के बड़े राजनीतिक दल विपुल आर्थिक संसाधनों के बल पर चुनावी रणभूमि में उतरते हैं।
खर्च में पारदर्शिता की कमी और समयसीमा का उल्लंघन चुनाव सुधारों की मांग को और मजबूत बनाता है।
इसका सीधा असर चुनावों की निष्पक्षता, लेवल प्लेइंग फील्ड और राजनीतिक जवाबदेही पर पड़ता है।

