चंद्रपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव परिणाम कल जब घोषित हुए तो अनेक चौंकाने वाले नतीजे आये। न केवल जनता आश्चर्यचकित हुई बल्कि भाजपा को मिली करार हार से विकास पुरुष की प्रतिमा भी धूमिल पड़ गई। महाराष्ट्र के दिग्गज मंत्री व BJP के वरिष्ठ नेता Sudhir Mungantiwar 2 लाख 60 हजार 406 वोटों से हार गये। Congress नेता Pratibha Dhanorkar की जीत के भले ही अनेक कारण रहे होंगे, लेकिन करोड़ों के इवेंट और करोड़ों के विकास कार्यों के बावजूद मुनगंटीवार क्यों हार गये, यह सवाल चिंतन और चर्चा का विषय बना हुआ है। आखिरकार मुनगंटीवार को चंद्रपुर जिले की जनता ने नकार क्यों दिया ? यह सवाल भाजपा के समीक्षकों को सोचने पर मजबूर कर रहा है। आइये जानते है कि जिले की जनता और स्थानीय मीडिया ने मुनगंटीवार के हार के वजहों का किस तरह से आकलन किया है ?
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प्रशासन के कर्मचारी नाराज
पोस्टल बैलेट की गणना में प्रतिभा धानोरकर को जहां 1775 वोट मिले, वहीं सुधीर मुनगंटीवार को 1,051 वोट हासिल हुए। इससे जाहिर होता है कि प्रशासन के कर्मचारियों ने भी विकास पुरुष के विकास को नकार दिया।
हंसराज अहिर साइडलाइन
बीते लोकसभा चुनाव में सुधीर मुनगंटीवार के खेमे ने हंसराज अहिर की हित में काम नहीं करने की बात उजागर हुई थी। मुनगंटीवार के कार्यक्षेत्र से भी अहिर को कम वोट मिले थे। इस नाराजगी के बीच अहिर की लोकसभा टिकट काटकर मुनगंटीवार चुनाव मैदान में कूद पड़े। कहा जा रहा है कि नाराज अहिर गुट ने मुनगंटीवार के पक्ष में काम न करते हुए हिसाब चुकता कर दिया।
रोजगार विहिन विकास
मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने वैसे तो अनेक विकास कार्य किये। करोड़ों की सरकार निधि पानी की तरह बहा दिया। परंतु इसका लाभ चंद्रपुर के बेरोजगार युवाओं को नहीं मिल सका। रोजगार बढ़ोतरी होने के बजाय रोजगार घट जाने की स्थिति बनी रही। विकास पुरुष का तमगा रोजगार के मामले में केवल दिखावा बनकर रह गया।
गार्डन संस्कृति नापसंद
चंद्रपुर जिले में जहां एक ओर बेरोजगारी और महंगाई का मार जनता झेल रही हो, वहां जनता की मांग न होते हुए भी हर तहसील व शहरों में अनावश्यक रूप से करोड़ों के गार्डन निर्माण किये गये। मुनगंटीवार की पहल से बने अधिकांश गार्डन कुछ ही वर्षों में तहस-नहस भी हो गये। असामाजिक तत्वों व प्रेमी युगलों के यह ठिकाने बन गये। इसका आम जनजीवन पर कोई सकारात्मक असर नहीं हुआ। जनता ने मुनगंटीवार के इस गार्डन संस्कृति को नकार दिया।
ठेके बढ़े, जीवन स्तर घटा
मंत्री मुनगंटीवार के कार्यकाल में उन्होंने करोड़ों की निधि चंद्रपुर जिले में खर्च की। यहां सड़कें, पुल, सरकारी इमारतें, क्रीड़ा संकुल, गार्डन, जीम आदि सीमेंटनुमा निर्माण कार्यों के ठेके बेतहाशा जारी हुए। परंतु जिले की जनता का जीवन स्तर ऊंचा उठाने वाले प्रयास कम ही किये गये। उल्टे महंगाई और बेरोजगारी से लोगों से जीवन स्तर घट गया।
किसान, खेत मजदूर, ग्रामीण नाराज
मंत्री मुनगंटीवार के विकास कार्य आमतौर पर चमक-दमक से युक्त होते हैं। इसका आम जनता से सीधा संबंध नहीं होता। किसानों की आमदनी दोगुनी न हो सकीं। गरीब खेत मजदूर व ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों के जीवन में कोई खास बदलाव वे नहीं ला सकें। सिंचाई व कृषि आधारित विकास में जिला उल्लेखनीय प्रगति न कर सका।
घटिया विकास कार्य से कलंक
मंत्री मुनगंटीवार के करोड़ों के विकास कार्य जिन-जिन ठेकेदारों को दिये गये, उन्होंने ही मुनगंटीवार के छवि को कलंकित कर दिया। क्योंकि अधिकांश विकास कार्य कहीं ढह गये तो कहीं टूट गये तो कहीं जल गये। अनेक निर्माण कार्यों के चंद दिनों बाद ही उसके क्षतिग्रस्त होने की खबरों ने मुनगंटीवार के छवि को दागदार कर दिया। इसके बावजूद मुनगंटीवार ने किसी भी ठेकेदार के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। इससे उनकी साख जनता में घटती चली गई। लोगों का विश्वास डगमगाने लगा।
चेले-चपाटों की धौंस
एक समय था जब मंत्री मुनगंटीवार आम जनता के लिए सहजता से उपलब्ध हुआ करते थे। लेकिन बीते कुछ वर्षों में उनके चंद करीबियों ने मुनगंटीवार को ऐसे घेरे रखा कि आम जनता अपने कार्य लेकर सीधे उन तक नहीं पहुंच पा रही थी। जनता को चेले-चपाटों की सहायता लेनी पड़ रही है। इससे उनकी हिम्मत बढ़ गई। विविध ठेके पाने एवं मंत्री के करीब रहने से वे आम जनता पर धौंस दिखाने लगे। जनता धीरे-धीरे मुनगंटीवार से दूर होती चली गई।
सेवा केंद्र बने मनमानी के अड्डे
पालकमंत्री सेवा केंद्र के नाम से राजुरा व घुग्घुस में सेंटर खोले गये। यहां आम गरीब जनता अपनी दिक्कतों को लेकर आती रही। लेकिन इन केंद्रों पर सेवा कम और राजनीति अधिक होने लगी। केवल अपने ही करीबियों और भाजपा के चाहने वालों को प्राथमिकता देने तथा आम जनता से दूरी बनाने की नीति का खामियाजा मुनगंटीवार को ही भूगतना पड़ा। जबकि सेवा केंद्र के नाम पर मुनगंटीवार के चेले ही खुद को बड़े नेता के रूप में जनता पर रौब झाड़ने लगे।
इवेंट पर करोड़ों के धन की बर्बादी
मंत्री मुनगंटीवार की छवि उनके कार्यकर्ताओं द्वारा विकास पुरुष की बना दी गई। इसके बाद जब सरकार के करोड़ों रुपये बड़े-बड़े इवेंट पर खर्च किये जाने लगे तो लोगों के मन में विकास को लेकर संदेह निर्माण होने लगा। वहीं चुनाव में हार जाने का भय तथा सतत हाइलाइट होने की चाह ने मुनगंटीवार को इवेंट प्रेमी बना दिया। परंतु यह इवेंट भले ही चंद लोगों के लिए मनोरंजन का कारण बना हो, अपितु बहुतांश लोगों के लिए यह इवेंट फिजूल खर्ची और धन की बर्बादी किये जाने की सोच पर लाकर खड़ा कर दिया।
महाराष्ट्र और देश की राजनीति का असर
महाराष्ट्र में जिस तरह से शिवसेना और राकांपा को तोड़ा गया, जिस तरह से उद्धव ठाकरे की सरकार गिराकर एकनाथ शिंदे की सरकार बनाई गई, जिस तरह से अजित पवार एवं अशोक चव्हाण को भ्रष्ट बताते-बताते उन्हें ही अपना साथी बना लिया गया, उन सभी मामलों का असर चंद्रपुर की जनता पर भी पड़ा। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनेक वायदे, जुमले में तब्दील हुए, इसका असर भी स्थानीय जनता पर पड़ा।
मुनगंटीवार भूल गये अपने वायदे
एक समय था जब सुधीर मुनगंटीवार पृथक विदर्भ की पैरवी को लेकर काफी आक्रामक हुआ करते थे। विधानसभा में अध्ययनपूर्ण आंकड़ों के साथ गरजते थे। लेकिन सत्ता की कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने पृथक विदर्भ का मुद्दा भूला दिया। महंगाई व पेट्रोल के बढ़ते दामों पर आंदोलन करने वाले मुनगंटीवार बरसों से चुप बैठ गये। स्मार्ट सिटी की तर्ज पर शहरों को विकसित करने का सपना भी खोखला ही रहा। प्रदूषण कम करने में भी वे नाकाम ही साबित हुए।
भारी पड़े विवादित बयान
इस बार के लोकसभा चुनावों के दौरान सुधीर मुनगंटीवार शुरुआत से ही आक्रामक दिखे। उन्होंने प्रतिभा धानोरकर को मात देने के लिए व्यक्तिगत आरोप लगाने शुरू किये। आंसूओं की राजनीति करने और पति की मौत पर सहानुभूति बटोरने के अलावा ओबीसी-कुणबी की जातिगत राजनीति करने का लांछन उन्होंने धानोरकर पर लगाया। पश्चात नितीन गडकरी के शीलाजीत वाले विवादित बयान और मुनगंटीवार के भाई-बहन के संबंधों को लेकर दिये अश्लिल बयान से चुनाव की बयार बदल गई। इन विवादित बयानों ने प्रधानमंत्री मोदी की अपील को भी ध्वस्त कर दिया।