माशिरकर की इंट्री : गुटबाजी से निष्ठावान भाजपा कार्यकर्ताओं में नाराजगी
भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं वर्तमान विधायक 🔍किशोर जोरगेवार के खिलाफ उनके 200 यूनिट मुफ्त बिजली के दावे को आईना दिखाने और उनका विरोध करने के लिए एक विशाल आंदोलन खड़ा कर 🔍काले गुब्बारे उड़ाने वाले 🔍आशीष माशिरकर पर आज स्वयं किशोर जोरगेवार ही मेहरबान नजर आ रहे हैं। आशीष को यह आशीर्वाद इसलिए मिल रहा है, क्योंकि उन्होंने भाजपा नेता🔍 सुधीर मुनगंटीवार का दामन त्यागकर जोरगेवार के गुट में 🔍घुग्घुस की कमान संभाल ली है। परंतु उन्हें मिल रहे इस आशीर्वाद से बरसों से यहां सेवारत भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में काफी नाराजगी दिखाई पड़ रही है। ऊपरी स्तर पर जहां भाजपा 2 खेमों में बंटी हुई दिख रही है, वहीं घुग्घुस में अब 🔍भाजपा के भीतर अनेक खेमे निर्माण हो रहे है और विरोध की चिंगारियां चर्चाओं के माध्यम से भड़कने लगी है।
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घुग्घुस में भी गुटबाजी ने सिर उठाया
हाल ही में चंद्रपुर भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में हरीश शर्मा और चंद्रपुर शहर अध्यक्ष सुभाष कासमगोट्टूवार की नियुक्ति के बाद एक ओर जहां संगठन में नई ऊर्जा की अपेक्षा थी, वहीं दूसरी ओर, यह निर्णय भाजपा के भीतर दबे गुटीय संघर्ष को सतह पर ले आया है। 🔍चंद्रपुर की तर्ज पर औद्योगिक नगरी घुग्घुस में भी गुटबाजी ने अपना सिर उठा लिया है। भाजपा की स्थानीक इकाई में नेतृत्व की असमंजसता और गुटों की खींचतान ने आने वाले🔍 नगर परिषद चुनावों से पहले संगठन को गंभीर चुनौती के रूप में घेर लिया है।
नेतृत्व को लेकर असंतोष की आग
विधानसभा चुनावों के बाद🔍 सुधीर मुनगंटीवार सेवाकेंद्र के प्रति भाजपा के कई स्थानीय नेताओं में असंतोष दिखा। कई प्रमुख चेहरे—जैसे पूर्व सरपंच राजकुमार गोड़शलवार, उप सरपंच संजय तिवारी, पंचायत समिति के पूर्व उपसभापति निरीक्षण तांड्रा, पूर्व प्रभारी सरपंच संतोष नुने, ग्रामपंचायत सदस्य साजन गोहने, महेश लठ्ठा समेत अनेक महिला सदस्य—ने अब विधायक जोरगेवार के पक्ष में राजनीतिक निष्ठा जताई है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि मुनगंटीवार खेमा राजनीतिक दृष्टि से अलग-थलग पड़ता जा रहा है।
विवेक बोढे घुग्घुस छोड़ राजुरा में सक्रिय
🔍विवेक बोढे, जो अब तक सेवाकेंद्र के नेता के रूप में सक्रिय थे, वे अब राजुरा विधानसभा क्षेत्र की ओर झुकते दिखाई दे रहे हैं। सोशल मीडिया में विधायक 🔍देवराव भोंगले के कार्यक्रमों में उनकी लगातार उपस्थिति इस ओर संकेत करती है कि वे अपनी नई राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं।
आशीष माशिरकर की इंट्री और गहराता मतभेद
घुग्घुस में राजनीतिक तापमान तब और चढ़ा जब आशीष माशिरकर की संगठन में सक्रिय भागीदारी बढ़ने लगी। पहले वे मुनगंटीवार के निकट माने जाते थे। लोकसभा चुनावों के दौरान माशिरकर ने मुनगंटीवार के प्रचार में अग्रणी भूमिका निभाई थी, वहीं विधानसभा चुनावों में जोरगेवार के विरोध में 200 यूनिट मुफ्त बिजिली के काले गुब्बारे उड़ाने जैसे आंदोलन का नेतृत्व भी किया था। लेकिन, बदले हुए राजनीतिक समीकरणों में अब वही माशिरकर विधायक जोरगेवार के करीबी बनकर उभरे हैं। उनके जन्मदिन पर घुग्घुस में चारों ओर होर्डिंग्स और बैनर लगाए गए।
बाहरी व्यक्ति को कमान सौंपना क्या भाजपा कार्यकर्ता बर्दाश्त करेंगे ?
स्थानीय भाजपा नेताओं के बीच यह चर्चा है कि, एक बाहरी व्यक्ति को घुग्घुस जैसे संवेदनशील औद्योगिक क्षेत्र की कमान सौंपना, जबकि स्थानीय नेता सक्रिय हैं, भाजपा के स्थानीय संगठन को चुभने वाला निर्णय प्रतीत होता है। चर्चाएं जोरों पर हैं कि भाजपा का आलाकमान ने अब तक घुग्घुस शहर अध्यक्ष और महामंत्री की नियुक्ति नहीं कर पाया है। कारण स्पष्ट है—मुनगंटीवार और जोरगेवार गुटों के बीच खींचतान। जो नेता एक समय मुनगंटीवार के नजदीक थे, वे आज उनके खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। वहीं, जोरगेवार खेमा हर हाल में अपने पक्ष का प्रत्याशी नियुक्त करवाने के लिए दबाव बना रहा है।
कार्यकर्ता अब संभ्रम में
“एक अनार सौ बीमार” जैसी स्थिति है। हर गुट अपने-अपने नाम को आगे बढ़ा रहा है, लेकिन सर्वसम्मत नेतृत्व उभर कर नहीं आ रहा है। ऐसे में संगठनात्मक निर्णयों में देरी स्वाभाविक है, लेकिन इसके कारण पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक भ्रम की स्थिति में हैं।
चुनावों में जन समर्थन डगमगाएगा
भाजपा जैसी कैडर आधारित पार्टी में जब नेतृत्व को लेकर इतनी असमंजसता हो, तो यह केवल गुटबाजी तक सीमित नहीं रहता, बल्कि जमीनी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर डालता है। घुग्घुस जैसा औद्योगिक क्षेत्र जहां कामगार, युवाओं और पिछड़े वर्गों की बड़ी जनसंख्या है—वहां राजनीतिक अस्थिरता का सीधा असर आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में पड़ सकता है। अगर जल्द ही नेतृत्व के सवालों का समाधान नहीं निकाला गया, तो भाजपा को न केवल संगठनात्मक नुकसान झेलना पड़ सकता है, बल्कि आने वाले चुनावों में जन समर्थन भी डगमगा सकता है।
अवसरवादी राजनीति के टकराव
घुग्घुस भाजपा के वर्तमान हालात केवल एक संगठनात्मक खींचतान नहीं, बल्कि स्थानीय बनाम बाहरी, पुराने बनाम नए, और सैद्धांतिक बनाम अवसरवादी राजनीति के टकराव का प्रतीक बन चुके हैं। माशिरकर नई दिशा हो या बोढ़े की भूमिका —हर निर्णय भाजपा के भविष्य को प्रभावित करने वाला साबित हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इन गुटीय संघर्षों को कैसे सुलझाता है और क्या संगठन को फिर से एकजुट कर पाता है? इस ओर सभी की नजरें टिंकी हुई हैं!